एक आवाज जो कसक कर रह गयी... उसे बयानात कर रहे कंगन... एक आवाज जो कसक कर रह गयी... उसे बयानात कर रहे कंगन...
सोच में मेरी जिंदा हो तुम नजरों के ख्वाबों की बेताबियों! सोच में मेरी जिंदा हो तुम नजरों के ख्वाबों की बेताबियों!
सड़क पे फुटपाथ पे जागता सोता इंडिया। सड़क पे फुटपाथ पे जागता सोता इंडिया।
मैं सोचता हूँ, बहुत सोचता हूँ फिर सोचता हूँ कि क्यों सोचता हूँ। मैं सोचता हूँ, बहुत सोचता हूँ फिर सोचता हूँ कि क्यों सोचता हूँ।
ये कविता उन तमाम जिद्दी लोगो को ध्यान में रख के लिखी गयी है जिनकी जिद ने कितनी ही क्रांतियों की नींव... ये कविता उन तमाम जिद्दी लोगो को ध्यान में रख के लिखी गयी है जिनकी जिद ने कितनी ह...
हलके में मत लेना तुम सावले रंग को। हलके में मत लेना तुम सावले रंग को।